...

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आखिर मेरी भी कुछ मजबूरी है।
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम क्या जानों मेरे लिए क्या क्यों ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
आखिर मेरी भी कुछ मजबूरी है।

झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम ना जानो जीने के लिए,
पैसे कितने जरूरी है,
आखिर मेरी भी कुछ मजबूरी है।

झूठ नहीं मजबूरी है,
खबर नहीं तुमे,
कितने जुल्म ‌ सहेती में
बंद दरवाजो के पिछे
आखिर मेरी भी कुछ मजबूरी है।

झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम क्या जानो,
पैसों के लिए अपना ईमान बेचना ,
कितना...