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भक्त और भगवान
#MythologyRetold

तीनों लोकों में राधा की स्तुति सुनकर देवर्षि नारद झुँझला गये उनकी शिकायत थी कि वह कृष्ण से अथाह प्रेम करते हैं फिर भी उनका कोई नाम क्यों नहीं लेता ।सभी भक्त राधे राधे ही क्यों करते रहते हैं।
नारद जी अपनी परेशानी लेकर कृष्ण के पास पहुँचे वहाँ जाकर देखा श्री कृष्ण सिर दर्द से कराह रहे थे ।उन्होंने कहा भगवन सिर दर्द का कोई उपचार है? मेरे ह्रदय के रक्त से अगर यह शांत हो जाए तो मैं रक्तदान कर सकता हूँ।
श्री कृष्ण ने उत्तर दिया कि मेरा कोई चरणामृत यानी अपने पाँव धो कर पिला से तो मेरा दर्द शांत हो सकता है।
नारद ने सोचा भक्त का चरणामृत वह भी भगवान के श्रीमुख में !🤭ऐसा करने वाला घनघोर पाप का भागी बनेगा । ऐसा जानते हुए कौन नरक का भागी बन ने को तैयार होगा। श्री कृष्ण ने नारद से कहा कि वह रुक्मणी से कहे ।
नारद जी रुक्मणी के पास गए उन्होंने रुक्मणी को सारा वृतांत सुनाया तो रुक्मणी बोली नहीं नहीं देवर्षि मैं ये पाप नहीं कर सकती।
नारद ने लौटकर रुक्मणी की बात श्री कृष्ण को बताई । श्री कृष्ण ने उन्हें राधा के पास भेजा ।राधा ने तत्काल एक जल का पात्र मँगवा कर उसमें अपने दोनों पैर डुबोये और फिर वह नारद से बोली देवर्षि इसे तत्काल श्री कृष्ण के पास ले जाइये ।
मैं जानती हूँ भगवान को अपने अपने पैर धो कर पिलाने से मुझे नरक में भी जगह नहीं मिलेगी पर अपने प्रियतम के सुख के लिये अनंत यातना भोगने को तैयार हूँ ।
अब देवर्षि समझ गए कि राधा का तीनों लोकों में क्यूँ स्तुति गान हो रहा है।अब देवर्षि भी राधा का स्तुति गान करने लगे ।
आज के संदर्भ में आप ख़ुद ही देख लीजिए कि हमारा प्रेम किस श्रेणी में आता है।
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© गुलमोहर