...

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बिन तेरे
देख! बिन तेरे किस हाल से गुज़र रही हूँ मैं,
जैसे एक उम्र तक, जिंदगी से बेख़बर रही हूँ मैं I

तू साथ था, तो थी मैं हर महफ़िल की शान,
बाद तेरे ,हर महफ़िल में बे-असर रही हूँ मैं I

होंगे और भी शायर, हो टूटा दिल नेमत जिनका,
तेरे दामन से छूट के, दर-व- दर रही हूँ मैं I

नजरें थकती नहीं,रास्ते भी अब रुकते नहीं,
कैसे कहूं, मंज़िल के लिए बेताब किस कदर रही हूँ मैं I

बुझा चिराग, ढली शमाँ,तन्हाई ख़ामोशी को सिमटा के,
तेरे घर की तलाश मैं, सारी रात बेख़बर रही हूँ मैं I

आरजू है अब मेरी, कोई पुकारे लेकर नाम मेरा,
खो ना जाऊँ कहीं इस भीड़ में, इसी बात से डर रही हूँ मैं I

देख! बिन तेरे किस हाल से गुज़र रही हूँ मैं,
जैसे एक उम्र तक, जिंदगी से बेख़बर रही हूँ मैं I