...

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नयी कहानी
एक यह भी कहानी हुई है,
बात पुरानी नहीं, नयी है,
ढंग निभाने का बदल गया
व्यवहार रिश्तों में बिगड़ गया

पहले ऐसा होता था
सबका जीवन सादा था
हर कोई अपना लगता था
प्रेम सबमें होता था।

घर में बहू नयी आती तो
सबको अपनाने की वो
कोशिश करने लगा जाती
सब पर प्रेम लुटाती थी।

आईं बहू घर में बन कर रौशनी
सब के मन को भाने वो लगी
वह भी सबको अपनाने लगी
आये इक घर में मेहमान।

लग गये जब सब उनकी खातरी में
बैठे-बैठे ही वे पूछ बैठे!
क्या-क्या लाई है बहू दहेज में
मेरी बहू तो लाई पन्द्रह लाख है।

जवाब जब सास ने दिया यह
हमने केवल मांगा लड़की का हाथ था
फिर भी उन्होंने अपनी हैसियत ज्यादा किया
सुन कर बहू के बिगड़ने लगे तेवर।

अब घर में रोज होने लगे क्लेश
जमाना सांस का नहीं बहू का है
कहती रोज किया आपने क्या है
रसोई में खाना बनाने चार बार है।

अपनी मांकी तारीफें हर रोज दोहराती
सास को वह ताने मार मार कर दुखाती
न वो खुशी कभी दिखलाती,देवर-ननद
को वह केवल दर्द ही देती थी।

समय अब गुजरना कठिन हो गया
सब का मिल कर रहना दुभर हो गया
लिया निर्णय ससुर ने तब,कहा
आज से तुम रहो अपना चूल्हा सुलगाकर।

प्रश्न अब मन में उठे हैं क्या ग़लती सास की है?या घर आये मेहमान की है?
या फिर बहू संस्कार की है? या हालात की है?
नहीं यह सब कुछ इस बात पर है कि सब्र की कमी बड़ी है,सहन का निशान नहीं है।।