काव्य-सर्जक।
काव्य-सर्जक-
जब कभी संसार मस्तक भार होता मनुज व्यथा का
तब उतारे निमित्त दुजा कवि बिन कोई नहीं।
प्रबोधिनी की स्याहि से कागजों पर पथ लिखें
जैसे श्यामल...
जब कभी संसार मस्तक भार होता मनुज व्यथा का
तब उतारे निमित्त दुजा कवि बिन कोई नहीं।
प्रबोधिनी की स्याहि से कागजों पर पथ लिखें
जैसे श्यामल...