...

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जीवन बाला।
जीवन बाला।

कभी भ्रांतियों के श्रापो से।
कभी शुभाशीष अलाप प्रसंगों से।
एक बहली की रूप रेखा बनकर कर तुम।
कभी सुख तुम कभी दुख तुम।
जीवन का प्रारंभ और अंत स्वप्न हो।
आगमन पुनर्गमन का एहसास हो।
सत्य के शंख ध्वनि मे,श्वासो का संघर्ष है।
पर्दो में प्रकाश,विद्या में उत्तंग है।
बहु योजना विस्तार तुम्हारा,भावनाओं की नगरी में।
तुम प्रलय बाण से कभी सवारती धरा देह की बदली में।
@kamal