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हास्य रस

© Nand Gopal Agnihotri
।। हास्य कथा।।
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अजी सुनत हौ,
कहौ का कहती हौ, बहिर समझे हौ का?
अरे नाहीं बहिर होंय तुम्हार दुश्मन।
आज आई रही रामखेलावन केर मेहेरिया,
मूंड़े के बाल सन हस सफेद होय गये रहें,
मुला आज काजल हस काले-काले लागत रहैं।
मैं पूछेंव बहिनी य कसत होइगा।
तब बोली अरे बहिनी बजारे माॅ रंग-बिरंग के डाई बिकात हैं, पानी मॅ घोरि के मूड़े मॅ लगाय लेव,मिन्टन मॅ काले होइ जयिहैं।
अपनौ बालन मॅ तो सफेदी आवै लागि है।
वही कहित रहै,लै अवतेव तो कस रहत ?
तब उंई कहेन, अरे भागवान
न तुम्हार कोऊ पुछवैया है न हमार कतौ ठौर।
एक बात आउर है,
बालन केर सफेदी तो डाई लगाये से छुप जाई,
मुला जब गालन मॅ झुर्री परिहैं तब का करिहौ?
यहि बदे कहित है,जस दैव राखें तस रहौ।
यही मॅ भलाई है।
नन्द गोपाल अग्निहोत्री

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