...

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दिल के अल्फाज
ये हादसा, दोबारा कभी हुआ नहीं।
बाद उसके किसी ने, रूह को मेरी छुआ नहीं।

चाहता था मै, बस प्यार उसका।
आदमी मै, हवस का भूखा नहीं।

कह सकते हो तुम, इसको फितरत मेरी।
दुश्मनो की अपने, दी कभी बद्दुआ नहीं।

भुला दिया है शायद उसने मुझको।
लेकिन मै अब तक उसको भूला नहीं।

घायल है दिल मेरा सदियों से।
ये और बात है कि, खंज़र अब तक चुभा नहीं।

भरा था जो तालाब अश्को से मेरे।
वो अब तक है सूखा नहीं।

पूरी तो होती नहीं कोई आरज़ू मेरी।
इसीलिए मांगता अब दुआ नहीं।

हो कितनी भी तकलीफ चाहे मुझको।
अहसान किसी का कभी लुंगा नहीं।

तन जुदा हो भले ही हमारे।
मगर रूह हमारी जुदा नहीं।

चलता रहा मै अपनी ही धुन में।
रोके से किसी के मै रुका नहीं।

खाइ थी कसम ये कभी मैंने।
अलावा उसके किसी को चाहुंगा नहीं।