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तेरे नयन
तेरी बातों की खूबसूरती यूँ दिल चुरा लेती है प्रिये,
दूर कितना भी होना चाहूँ पास बुला लेती है प्रिये।
मधुर सुधारस सिक्त हृदय तेरी मधुमय बोली से यूँ,
बातों में ही लगे जैसे तू यूँ अंग लगा लेती है प्रिये।
कितने सुंदर नयन-नक्श अधराधर कोमल पुष्प-पंखुड़ी,
बातें तेरी कोई मधुबन विविध भाँती ज्यों पुष्प-लड़ी।
रसमय तेरे प्रसंग अनोखे श्रवण-रस अवलोकित रूप,
तेरे मुख-मंडल की शोभा ज्यों दमक रही हो धूप-अनूप।
कर-कमलों का स्पर्श तुम्हारा, भान कराएँ कोमलता तेरी,
नयनों की वाणी सहज रूप बतलाएं मन-निश्चलता तेरी।
तू है पावन-पुनीत पराग, मैं मन अलि सा गुंजित भ्रमर,
तेरी बातों की खूबसूरती मेरे मन का मधु-पराग अमर।
© विवेक पाठक
दूर कितना भी होना चाहूँ पास बुला लेती है प्रिये।
मधुर सुधारस सिक्त हृदय तेरी मधुमय बोली से यूँ,
बातों में ही लगे जैसे तू यूँ अंग लगा लेती है प्रिये।
कितने सुंदर नयन-नक्श अधराधर कोमल पुष्प-पंखुड़ी,
बातें तेरी कोई मधुबन विविध भाँती ज्यों पुष्प-लड़ी।
रसमय तेरे प्रसंग अनोखे श्रवण-रस अवलोकित रूप,
तेरे मुख-मंडल की शोभा ज्यों दमक रही हो धूप-अनूप।
कर-कमलों का स्पर्श तुम्हारा, भान कराएँ कोमलता तेरी,
नयनों की वाणी सहज रूप बतलाएं मन-निश्चलता तेरी।
तू है पावन-पुनीत पराग, मैं मन अलि सा गुंजित भ्रमर,
तेरी बातों की खूबसूरती मेरे मन का मधु-पराग अमर।
© विवेक पाठक
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