...

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छवि
#दर्पणप्रतिबिंब
कभी सुन्दर कभी प्यारा कभी उदास लगता हूँ,
ये दर्पण ही है जिसमे हर दिन मैं अलग कुछ खास लगता हूँ ,
बहुत कुछ उल्टा हो जाता है इस दर्पण में,
रोता चेहरा भी खिल जाता है मेरा इस दर्पण में,
बदलाव रोज आता है इस दर्पण से,
कभी चुभ जाता है कभी बस जाता है इस दर्पण से ,
इस दर्पण से बात करने पर जवाब नहीं आता,
इस दर्पण से सब कुछ नजर आता जो खुद से छिप जाता,
छवि खुद की इसमें नजर आती है ,
कभी सुन्दर कभी बेजान आती है,
लोगों से अक्सर पागल कहा जाता हूँ,
खुद से बातें करने में इतना खो जाता हूँ,
मैंने लोगों के चेहरे से ज्यादा अपनी आँखें देखी है,
कभी खुश कभी नम देखी है,
इस दर्पण से मैंने अपना कल देखा है,
हर दम अकेले में खुद को इस दर्पण के संग देखा है,
मेरी आँखें भी इसकी हो जाती है,
जब भी मेरी नज़र इस पर जाती है,
कभी सुन्दर कभी प्यारा कभी बेजान है,
ये दर्पण ही मेरे कल आज का फर्क और पहचान है।
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