...

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मेरे ख्वाब
जब भी रातों में सोता हूं
कुछ ख्वाब लिए इन आंखों में
इक बेचैनी सी होती है
सहज,सुदृढ़, इन सांसो में।
मैं रोज खुद ही से लड़ता हूं
खुद ही निजात मैं करता हूं
ये द्वन्द हो रहा और जटिल
मैं तिल तिल करके मरता हूं।
ये रोज रोज का मरना हैं
मुझको बस इक पल जीना हैं
इस इक पल को जीने की खातिर
मुझको, मेरा ख्वाब मुक्कमल करना हैं



© Danish 'ziya'