...

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गाँव
ये बस कुछ चंद महीनो की बात थी
आज फिर मेरी गांव से मुलाकात थी
शहर से निकला तो सवेरा था
गांव पहुँचा तो चाँदनी की बिसात थी
लोगों से मिलकर, उनका हाल जाना
चारपाई पर बैठे ताऊ से पूछा मुझे पहचाना
लंबी वार्ता के बाद मुझे गांव का ख्याल आया
मैने पूछा सब कुछ वैसा ही है या कुछ बदलाव आया
पिताजी तंज में बोले अभी आराम कर ले,कल खुद ही देख लेना
मैंने भी कहा ,मैं थका हूं तो थोड़ी देर तक सोने देना
अगली सुबह मैं घूमने, गांव को निकल पड़ा
गाँव देखने के बाद, मैं घर की ओर चल पड़ा
घर पहुँचते ही पिताजी से मैने कुछ ऐसा कहा
कि कुछ नही बदला ,सब वैसे का वैसा ही रहा
पिताजी मुस्कुराये और बोले ये कथन
"वो सोंधी-सी खुशबू ,तहजीब का जीवन
गाँवों में ही बसती थी,इस देश की धड़कन"
मैं अनुत्तरित-सा,बस उन्हे देखता ही रह गया
इन दो लाइनो का मर्म,मैं जिंदगीभर समझता रह गया ।




© Danish 'ziya'