...

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सुनो द्रौपदी
कृष्ण तो आएंगे ही
क्यों करना तब तक इंतजार
हाँथ लगाने तक का ही दुस्साहस करे कोई दुशासन उसके जंघा पर तू खुद कर प्रहार
वो चीर समझ छूना चाहे
तू बना तीर सर भेद दे
जिस गली राह में दिखे दुशासन
सीना उसका तू छेद दे
धृतराष्ट्र के राज्य में तुम
न्याय मांगती फिरती हो
यहां झुके हुए शीश मिलेंगे
फिर भी गुहार तुम करती हो
यहां भीष्म द्रोण तो बहुत मिलेंगे
पर दुर्योधन उन्हें अन्न खिलाता है
गांधारी भी क्या करे
बेचारी वो उसकी माता है
हे द्रौपदी तू केश नही
अपितु अपना वेश बदल
इस नग्न मानसिकता को तू
बना दे अब मरुस्थल
सुनो देश की द्रौपदी
तुम लक्ष्मी घर की कहलती हो
रक्तबीज जब खड़ा सामने
क्यों न काली बन जाती हो
आंख नोच लो निर्दयता से
देह के प्यासे वहशी की
तेरे साथ अभी हैं खड़े कृष्ण
न कर कमी विश्वास की।

ध्रुव 🖋️
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