...

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सर्द यादों के ज़माने
फिर आ गया सर्द मौसम
फिर तेरी यादों के ज़माने आये,
हर सफ़र का अंतिम पड़ाव है
लेक़िन स्मृतियों की यात्रा
का नहीं कोई भी ठहराव है,
ये अजर-अमर यादें
जैसे रोज उगता आफ़ताब
जैसे रात के दामन में माहताब,
मौन हैं पर बोलती बहुत हैं,
बस इकट्ठी हो हो कर इठलाती है,
हमारी छटपटाहट बेमानी है
समीर सी लहराती, क़लम में
उतर आती... तेरी यादें सर्द
संवेदनाएँ और सदियों तक
वादा निभातीं.....अश्रु भरी
आँखों से अतीत में बुलाती...
ॠतुओं की खिड़कियों से
झांकतीं, आलिंगन के लिए आतुर
जैसे बचपन की हठी सखियाँ...
--Nivedita