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कुआं हुआ जल भर
वैशाख की तपते माह में,चले गजानन सबसे नज़रे बचाकर।
चाहते थे जाना अड़गॉंव,देहात जो था बरार।
वायुगति से चलते, जैसे हनुमान अवतार।
प्रचंड ताप सूर्य की,सूखा पड़ा था आपार।
तपती दोपहरी पहुंचे आकोली,जल की प्यास थी अपार।
देखा चारो ओर पर,कही पर न था जल का सरोकार।
दोपहरी में भास्कर खेतों मे मग्न, नही किसी से सरोकार।
देख उसे प्रसन्न गजानन,कष्ट में अन्न उगाए कृषक अपार।
ग्रीष्म प्रकोप था आपार,जीव करते हाहाकार।
एक घड़ा था जिसमे,लाया भास्कर पानी भरकर,
निकट जा गजानन ने माँगा जल, सूखे होठ पसीने से तर।
पानी बिन न प्राण रक्षण, जल दान है पुण्य कर।
क्रोध में कहा भास्कर ने, दान करते अनाथ पंगु देखकर।
तू तो है हुष्ट पुष्ट तुझे देकर नही करना पाप वर।
परिश्रम न कर बोझ धारा पर,पानी लाया मैं अपने सर।
जाओ चांडाल न देता तुम्हें जल,व्यर्थ न करता जल तुम पर।
एक निकम्मे का जन्म हमारे घर,दुर्भाग्य आया हमारे सर।
सुन गजानन चले दूर कुएं पर,मिल जाये जल कैसे भी कर।
कहा भास्कर वहाँ जल नही,और नही कहीं कोस कोस भर।
तुम ज्ञानी को होता कष्ट,गजानन बोले देखूं मैं प्रयास कर।
गजानन ने किया विष्णु स्मरण,जल यहाँ नही क्यों कर।
जन कल्याण करो प्राण रक्षो,कुएँ में जल देकर
क्षण में कुआं जल से भर,तृप्त हुए गजानन जल पीकर।
आया भास्कर शरणागत,सेवक आपका हुआ मैं जीवन भर।
सबने देखा चमत्कार,गजानन की जय जयकार।
संजीव बल्लाल १०/३/२०२४© BALLAL S