...

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दास्तान ए जिंदगी
युँही लिखते लिखते दास्तान ए जिंदगी लिखते गए
जिंदगी के बही खाते मे ग़मो का हिसाब लिखते गए

कुछ गैरों के और ज्यादा अपनों के घाव लिखते गए
गम नकद और खुशी उधार हर रोज़ लिखते गए

मिलाने बैठे जब आखिर मे जोड़ तोड़ जिंदगी का
मुनाफा कम और नुकसान ज्यादा लिखते गए

ख्वाबो और खुशियों की जागीर तुम्हारे नाम लिखते गए
बची हुई थी जख्मी रूह की पूंजी, और हम नीलाम होते गए।


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