वह सूर, वह लय, वह ताल
वह सूर, वह लय, वह ताल
सब उधारी का है
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
सब लिखावट उस फूलवाड़ी का है
मैं तो बस प्रतिमुर्ति हूं
सब उसकी देनदारी है
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
सब लिखावट उस भोली भाली का है
हस्ती कहां हमें
मैं तो एक जुआरी हूं
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
यह सब उस क्यारी कि है
रंग रूप खुबसूरती
देखा न ऐसा सुमारी हूं
मैं क्या लिखूं मेरी क्या औकात
सब उस देवी कि किरदार लिखता सारी हूं
अभी मेरी तभी तेरी
सब जग देखा सुमारी हूं
हां मैं मानता हूं कि
उसकी हमेशा से आभारी हूं
फूल बाग घटा
सब पर पड़ती वह भारी है
क्या कहूं मैं
वह गजब कि राज कुंवारी है
जिसके दम पर
लिखता सिंगार रस सारी हूं
मेरी क्या औकात
कलम वंदना करती उसकी जारी है
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
सब उधारी का है
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
सब लिखावट उस फूलवाड़ी का है
मैं तो बस प्रतिमुर्ति हूं
सब उसकी देनदारी है
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
सब लिखावट उस भोली भाली का है
हस्ती कहां हमें
मैं तो एक जुआरी हूं
मेरा क्या हैं कुछ नहीं
यह सब उस क्यारी कि है
रंग रूप खुबसूरती
देखा न ऐसा सुमारी हूं
मैं क्या लिखूं मेरी क्या औकात
सब उस देवी कि किरदार लिखता सारी हूं
अभी मेरी तभी तेरी
सब जग देखा सुमारी हूं
हां मैं मानता हूं कि
उसकी हमेशा से आभारी हूं
फूल बाग घटा
सब पर पड़ती वह भारी है
क्या कहूं मैं
वह गजब कि राज कुंवारी है
जिसके दम पर
लिखता सिंगार रस सारी हूं
मेरी क्या औकात
कलम वंदना करती उसकी जारी है
संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar
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