...

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आ कहीं दूर चले
आ चले कहीं दूर यहां कोई अब अपना नहीं,
इन आंखों में तुझे पाने के सिवा अब कोई सपना नहीं,
आ कैद कर लूं तुझे अपने दिल के दर्पण में,
मैं श्रंगार हूं तेरा तू झुठों की अब सजना नहीं,
आ देख तू आँखों में मेरी मैं हक़ीक़त हूं कोई सपना नहीं,
तू सुनहरे सपने देखाकर हर रोज अब चौंक कर जगना नहीं,
मैं एहसास हूं एक जो छुपता नहीं किसी की आंखों में,
मैं वक्त हूं एक जिसे दुसरे के लिए रुकना नहीं,
मैं झुका हूं सिर्फ तुम्हारी मोहब्बत में,
अब किसी गैर के आगे मुझे झुकना नहीं,
आ चले कहीं दूर यहां कोई अब अपना नहीं,

© ✍️Writer-S.K.Gautam