कविता…तुम
कविता…तुम
एक परिकल्पना हो
जो मुझे मिलाती है
कहीं किसी अनजाने कोने में
छुपकर...
एक परिकल्पना हो
जो मुझे मिलाती है
कहीं किसी अनजाने कोने में
छुपकर...