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जिस्म और रूह
काश...
मै भी
किसीदिन
परिंदो की तरह
हवा के कंधो.
पर बैठ कर..
गगन की सैर कर पाता
लेकिन मै जानता हूँ ऐसा संभव नहीं हैं.
ज़ब तक़ मै मर कर.
अपनी रूह क़ो
जिस्म से अलग नहीं कर देता
क्योंकि जिस्म तो उड़ेगा नहीं लेकिन रूँहे पुरे ब्रह्माण्ड क़ो
नाप भी सकती हैं
सैर
भी कर सकती हैं
मै भी
किसीदिन
परिंदो की तरह
हवा के कंधो.
पर बैठ कर..
गगन की सैर कर पाता
लेकिन मै जानता हूँ ऐसा संभव नहीं हैं.
ज़ब तक़ मै मर कर.
अपनी रूह क़ो
जिस्म से अलग नहीं कर देता
क्योंकि जिस्म तो उड़ेगा नहीं लेकिन रूँहे पुरे ब्रह्माण्ड क़ो
नाप भी सकती हैं
सैर
भी कर सकती हैं
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