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यह दुनिया की भीड़ अब अच्छी नहीं लगती
यह दुनिया की भीड़ अब अच्छी नहीं लगती,
हर तरफ खामोशी ही खामोशी सी लगती।
खुशियों की तलाश में निकला था मैं,
अब तो तन्हाई ही अपनी हमसफर सी लगती।
दिल की बातें अब किसी से कह नहीं पाता,
खुद की आवाज़ भी अब बेगानी सी लगती।
मिलती है हर रोज़ कोई नई पहचान,
पर अपने आप में ही एक अजनबी सा लगता।
© नि:शब्द
हर तरफ खामोशी ही खामोशी सी लगती।
खुशियों की तलाश में निकला था मैं,
अब तो तन्हाई ही अपनी हमसफर सी लगती।
दिल की बातें अब किसी से कह नहीं पाता,
खुद की आवाज़ भी अब बेगानी सी लगती।
मिलती है हर रोज़ कोई नई पहचान,
पर अपने आप में ही एक अजनबी सा लगता।
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