...

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शिकायतों-सा कुछ!
एक मख़सूस रिश्ते के टूटने का गम था
मन मायूस था और ज़हन में
मानों बारिश के बाद वाला सन्नाटा था

उस वक्त यकीन जैसा कुछ बिखरा पड़ा था
पछतावे के अलावा अश्कों में डूबा
आंधियों के बाद वाला समझाता शजर था

इस दुनिया की शिकायतें करता एक शख़्स
अपनों की आंखों में अपनापन तलाशता
उस दुनिया वाला एक बच्चा था

एक ओर हालातों को कोसता कोई
उस पार उन्हीं हालातों से गुज़र चुका कोई
जाना पहचाना सा अंजान था

और दूर कहीं किसी अंधेरे हुज़रे से
लफ्ज़ों में अपने हाल बुनता, शायद
तुम्हारे लिए अजनबी वो चेहरा था..!!

© ग़ज़लWali