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पिता - आस कहूं विश्वास कहूं ।क्यों न तुझको भग्वन कहूं।नतमस्तक चरणों मे हर बार दिखूं
पिता
पिता के भावों को परिभाषित करना बहुत ही मुश्किल है।पिता की नेत्रो मे अश्रु नहीं देखा है।परंतु पिता कमज़ोर होते हुए भी कभी जाहिर नहीं होने देता की वो कमज़ोर पड़ रहा है।साहस उसको उसके bachhon की आँखों मे देख कर मिलता है।पिता जब बाहर जाता है तो उसके मन मे चल रहा होता है की उसके बच्चे इसी उम्मीद मे राह तकतें हैं की बाबूजी आएंगे और साथ मे हमारे लिए कुछ उपहार लाएंगे ।यही सोच कर पिता अपनी जरूरत भूल बच्चों की जरूरत पूरी करता है। जिसे हम कई बार कहते हैं आखिर आपने हमारे लिए किया ही क्या है जबकी पिता सबसे बड़ा त्याग करता है।जीवन की सही मार्ग पर हमें हमारा पिता ही ले जाता है।मुझे याद है जब मै छोटा था मुझे चोट लगी थी और बुखार हो आया था ।माँ को इतना चिन्तित नहीं पाया था
पिता की आँखों मे अश्रु का सैलाब ummd आया था ।मुझसे लिपट वो कहने लगते बेटा फ़िक्र मत करो मै हूँ ना ।मै सब ठीक कर दूँगा।और जादूगर की तरह उंगलियां चलाने लगते और कहते आबरा का डाबरा गिल्ली गिल्ली छू।और गुदगुदाने लगते।मै जोरों से हंस पड़ता।जब कभी उनसे दूर होता हूँ उनकी तस्वीर ले कर खूब रोता हूँ।साथ न छूटे तेरा खुदा से हर बार कहता हूँ।पर वही होता है जो उसे मंजूर होता है।एक एक्सीडेंट मे पापा की अकाल मृत्यु ने मुझे तोड़ दिया।मानो हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा हो।कहीं न सूरज दिखता हो।
पकड़ ऊँगली जिसकी चलो न साथ हो वो बतलाओ ज़रा वो एहसास कैसा हो।
© dube prayagwasi