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शब्द और रूह
शब्द बोले रूह से,तू क्यूँ तड़पती है
क्यूँ इतना सब कुछ ख़ुद पर सहती है !
तू भी मेरी तरह शब्दों के बाण चलाए कर ,
कोई सताये तुझे,मेरी तरह दिल चीर जाया कर !
रूह बोली शब्द से तुझमें और मुझमें यही फरक,
तू चाकू की धार से कर देती है सबको अलग !
तू अपने शब्दबाण से रूह को छलनी करती है,
तू तो रिश्ता ख़त्म का सदियों तक चुभती है !
मैं रूह से रूह तक पहुँच कर पहेली हल करती हूँ ,
मैं सदा के लिए जोड़कर रिश्ता हमेशा ज़िंदा रहती हूँ !
क्यूँ इतना सब कुछ ख़ुद पर सहती है !
तू भी मेरी तरह शब्दों के बाण चलाए कर ,
कोई सताये तुझे,मेरी तरह दिल चीर जाया कर !
रूह बोली शब्द से तुझमें और मुझमें यही फरक,
तू चाकू की धार से कर देती है सबको अलग !
तू अपने शब्दबाण से रूह को छलनी करती है,
तू तो रिश्ता ख़त्म का सदियों तक चुभती है !
मैं रूह से रूह तक पहुँच कर पहेली हल करती हूँ ,
मैं सदा के लिए जोड़कर रिश्ता हमेशा ज़िंदा रहती हूँ !
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