12 views
लगा था
ज़रा रोशनी क्या नाराज़ हुई, मैं अंधेरों से दोस्ती करने लगा था,
दिल को ज़ख्म तो मिलना ही था,बेकदरों का दम भरने लगा था,
मंज़िल भला कैसे हासिल होती,मैं राहों के कंकर से डरने लगा था,
कैसे मुमकिन हैं कोई सच बोल जाये,जब सच ही अदालत में हरने लगा था,
जनता तो गुमराह होगी ही, जब नेता ही जुमला गढ़ने लगा था,
होते नहीं दंगे बस सनकीपन में,पहले धर्म का नशा सिर चढ़ने लगा था,
सड़ गया वो जेल के अंदर,जो सत्ता के खिलाफ़ लड़ने लगा था,
ज़िम्मेदार अब बन गया चाटुकार, हाथ बेईमानी से उसका मिलने लगा था,
खुल ही गया भेद लाख कोशिश के बावजूद,वो घूस को चंदा कहने लगा था,
माफ़ करना जो तुमको बुरा लगे, 'ताज' ज़्यादा ही सच में बहने लगा था।
दिल को ज़ख्म तो मिलना ही था,बेकदरों का दम भरने लगा था,
मंज़िल भला कैसे हासिल होती,मैं राहों के कंकर से डरने लगा था,
कैसे मुमकिन हैं कोई सच बोल जाये,जब सच ही अदालत में हरने लगा था,
जनता तो गुमराह होगी ही, जब नेता ही जुमला गढ़ने लगा था,
होते नहीं दंगे बस सनकीपन में,पहले धर्म का नशा सिर चढ़ने लगा था,
सड़ गया वो जेल के अंदर,जो सत्ता के खिलाफ़ लड़ने लगा था,
ज़िम्मेदार अब बन गया चाटुकार, हाथ बेईमानी से उसका मिलने लगा था,
खुल ही गया भेद लाख कोशिश के बावजूद,वो घूस को चंदा कहने लगा था,
माफ़ करना जो तुमको बुरा लगे, 'ताज' ज़्यादा ही सच में बहने लगा था।
Related Stories
10 Likes
8
Comments
10 Likes
8
Comments