...

12 views

रूबरू
रूबरू हम बैठे हैं
रूबरू तुम बैठें हो
ख़ामोशी लिए लबों पर
ना तुम कुछ कहते
ना हम कुछ कहते
चल फ़िर थोड़ा इज़हार हो
इक दूजे से इकरार हो
जुबां पे मोहब्बत नाम आए
ना दिल यूं ज्यादा बेकरार हो
सिर्फ़ नजरें अब तक मिल रहीं
वो भी इधर-उधर हो रहीं हैं
हया थोड़ी मिटाते हैं चलों
वक्त की कश्ती बढ़ रही हैं
आहिस्ता आहिस्ता नजदीक आओ
थोड़ा ही सही पर गुनगुनाओ
तेरी ख़ामोशी रास नहीं आती
गीत मोहब्बत का हमें सुनाओ
बंधक बन जाएं इस वास्ते में
ना छोड़े साथ किसी रास्ते में
तेरी मुस्कराहट का मैं तलबगार हूं
जो ना टूटें कभी वो ऐतबार हूं
दिल दे जाना तो दस्तूर हैं
पर मैं पूरा तुझ पर निसार हूं
मोहब्बत की शायरी का हर जिक्र तू हैं
मेरी रातों की तन्हाई में फ़िक्र तूं हैं
बेइंतहा बेपनाह बेतहाशा ये इश्क़
मेरे जीवन का इकलौता सब्र तूं हैं
बस ख़्याल सजाएं बैठें हैं
मोहब्बत की बरसात का
हमसफ़र तू वफ़ा से भरा हैं
ये ऐतबार हैं मेरे जज़्बात का
दौलत पे, हुस्न पे,मरते लाख हैं
सच्चे इश्क़ यहां होते ख़ाक हैं
बस तूं मिलें तो हर ज़ख्म मंजूर
ये दिल होता जा रहा बेबाक हैं
ख़ुदा की बरकत से तू मिलें
मेरे सुकून की तलाश तुझ पर खत्म हो
नवाज़िश हो ऐसी की फुरकत ना मिलें
तुझे पानें के लिए चाहें करनें पड़े लाखों जतन हो
हर कतरा आंखों से बहे तेरे लिए
मेरी शब का ख़्वाब हो तुम
तुम कोई छोटा किस्सा नहीं
मेरी जिंदगानी की पूरी किताब हो तुम
सवाल जो बहता हैं दिल में हरदम
पानें को मुझको क्या बेताब हो तुम

जुनूनियत सा मंज़र हैं मोहब्बत में
सुकून बेतहाशा मिलता हैं उसकी सोहबत में

-उत्सव कुलदीप









© utsav kuldeep