चराग़ की रौशनी को देख...........
ज़रा आहिस्ता से चराग़ की रौशनी को देख
एक दफ़ा मचलते अंधेरे की ज़िंदगी को देख
रौशनी की फितरत ना जाने क्या क्या कहती है
धीरे-धीरे ढ़लती हुए सांझ की बे-रुख़ी को देख
रौशनी का ज़िक्र चारों तरफ़ की चकाचौंध में है
एक दफ़ा उस ख़ामोश अंधेरे की दोस्ती को देख
ये जलती हुई बाती आहिस्ता से क्या कुछ कह गई
क्यों ना आज रात के प्यास की जादूगरी को देख
यहां वहां चिरागों...
एक दफ़ा मचलते अंधेरे की ज़िंदगी को देख
रौशनी की फितरत ना जाने क्या क्या कहती है
धीरे-धीरे ढ़लती हुए सांझ की बे-रुख़ी को देख
रौशनी का ज़िक्र चारों तरफ़ की चकाचौंध में है
एक दफ़ा उस ख़ामोश अंधेरे की दोस्ती को देख
ये जलती हुई बाती आहिस्ता से क्या कुछ कह गई
क्यों ना आज रात के प्यास की जादूगरी को देख
यहां वहां चिरागों...