...

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मेरी माँ ...
इम्ताहानों की दौड़ में,
जब-जब मैं उतरी,
मेरे हिस्से का काम मेरी माँ ने किया है,
फिर कितनी आसानी से कह दिया,
माँ तुमने क्या किया है।
उसके कंधे, कमर और बदन में दर्द है।
मेरी सौ सुनकर भी वो कितनी सर्द है।
वक्त नहीं होने की बात जमाना करता है,
पर मेरे लिए मेरी माँ के पास हमेशा फुर्सत है।
अपनी माँ से हमेशा मैंने अपना गम ही कहा है,
अपनी माँ को हमेशा उलझनों में रखा है।
कभी सोचा ही नहीं की उसकी एक मुस्कुराहट के लिए यह कह देना गलत नहीं,
माँ सब ठीक चल रहा है,
वरन मालूम है मुझको
माँ से कोई गम छिपा नहीं रहा है।
मुझे बेहतर बनाने की कशिश में
मेरी माँ का हाथ रहा है।
दुनिया की बुरी नज़र से बचाने में,
मेरी माँ का आशीर्वाद रहा है।
मेरी माँ सा दूजा भला कौन इंसान रहा है।
© मनीषा मीना

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