ग़ज़ल
मुझ को किस शख़्स का ख़्याल आया
क्यूँ गला एक दम से भर्राया
सच्चा इंसान बनना चाहूँगा
मैं अगर ज़िन्दगी में बन पाया
तुझ को खो कर मिला है चैन मुझे
मर के बीमार को सुकूँ आया
अपने पेड़ों का दिल दुखाया था
मुझ को सूरज ने ख़ूब झुलसाया
उस की ख़ुशबू से मत उलझना तुम
मैं ने फूलों को कितना समझाया
पर मुहब्बत का साथ नईं छोड़ा
मुझ को नफ़रत ने ख़ूब उकसाया
जाने वालों को क्या पता आख़िर
रुकने वालों पे क्या अज़ाब आया
इश्क़ ने फिर से दर पे दस्तक दी
फिर से घण्टी बजा के भाग आया
ख़ूब तैयार हो लो "मिर्ज़ा जी"
मौत ने आप को है बुलवाया
© Rehan Mirza
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क्यूँ गला एक दम से भर्राया
सच्चा इंसान बनना चाहूँगा
मैं अगर ज़िन्दगी में बन पाया
तुझ को खो कर मिला है चैन मुझे
मर के बीमार को सुकूँ आया
अपने पेड़ों का दिल दुखाया था
मुझ को सूरज ने ख़ूब झुलसाया
उस की ख़ुशबू से मत उलझना तुम
मैं ने फूलों को कितना समझाया
पर मुहब्बत का साथ नईं छोड़ा
मुझ को नफ़रत ने ख़ूब उकसाया
जाने वालों को क्या पता आख़िर
रुकने वालों पे क्या अज़ाब आया
इश्क़ ने फिर से दर पे दस्तक दी
फिर से घण्टी बजा के भाग आया
ख़ूब तैयार हो लो "मिर्ज़ा जी"
मौत ने आप को है बुलवाया
© Rehan Mirza
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