...

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ग़ज़ल
इस अँधेरे में मेरे पास में जुगनू भी नहीं
इतनी तन्हाई है और आँख में आँसू भी नहीं

किस तरह मान लूँ मैं इन को सुख़न का मरकज़
तेरी आँखों में किसी तरह का जादू भी नहीं

इस तरह सूख गया दिल से मुहब्बत का चमन
आप तो छोड़िए, अब आप की ख़ुशबू नहीं

घेर के मार रहे हैं मुझे अहल-ए-दुनिया
और सितम ये है कि इस बार सबब तू भी नहीं

दिल की ये दरिया दिली है जो सिमट आया यहां
वर्ना इतने तो दराज़ आप के गेसू भी नहीं

© Rehan Mirza

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