...

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" बीते लम्हे ......!! "

बहुत शिकायतें हैं मुझे मेरे खुदा से , मेरी इन आंखों के पास इतने सवाल क्यों है .....?
सब कुछ तो बीत गया है ,फिर वो मंजर उन बीते लम्हों का आज भी मुझे याद क्यों है....?
यह कैसा? तमाशा बना हुआ है मेरे अतीत का आज .....,
यह बदलता मौसम उन बीते लम्हों के गमों का, हाय.. अब ये बेहतरीन कमाल क्यों है ....?



कितना मुश्किल है इन अंधेरों में जीना, जहां उजाला कहीं नजर नहीं आता ...,
हर मोड़ पर मुश्किलें है , इन राहों में संभलना मुश्किल हो जाता..,
कितनी लापरवाह हो गई मैं उन बीते लम्हों की याद के साथ इस बेपरवाह दुनिया में रहकर .....,
कितना अंजाना-सा हैं सब, यहाँ क्यों ? मुझे...