...

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रंगमंच का राही
जिंदगी नहीं, मजाक है भाई,
तभी तो अपने ही अहसास कराते हैं,
कि कोई अपना नहीं होता।
इस जीवन के रंगमंच पर,
सभी अपना किरदार ही तो निभाते हैं।
किरदार निभाते समय, चूक से भी चूक नहीं करते,
कि लोगों को लगे कि आप उसके अपने हैं।
सच ही तो है भाई,
आए भी अकेले ही हैं,
और जाना भी अकेले ही है।
किसे अपना कहीं और किसे पराया,
भरोसा तो अपनी परछाई का भी नहीं है,
तो फिर किसे अपना कहें,
किसी को अपना कहना, अपना मानना,
बेईमानी मात्र है।
रोते हुए आए हैं,
और शायद अगर किसी ने अपना समझा हो,
तो उन्हें रुलाते हुए चले जाएंगे।
तब बस ,
हमारी यादें,
बस यादें,
ही तो रह जाएगी।
डॉ अनीता शरण।