...

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तुम वो तो नहीं
जो जाता था किसी पेड़ के पास...
किसी जंगल में...
खुद को तराशने के लिए...
किसी की मुहब्बत को ले कर...

जो बांटता था दुख दर्द रोज रात दिन...
दो आंसू भी बहाता था और दूसरे के आंसू भी पोंछ लेता था..
जो दिल का हाल सुनाता था...
अपनी बातों से ही मोह लिया करता था...
वो आशिकी में चूर चूर था...

वो खाना वक़्त पर खिलाता था...
वो हर वक़्त कसम दे जाता था...
जैसे किसी को वो खास महसूस करवाता था..
वो पल भर में खुश और पल में दुखी हो जाता करता था...

वो पक्के वादे करता था...
वो किसी से नहीं डरता था...
वो बस मुहब्बत की इबादत सुबह शाम करता था...
वो मिलने की तड़प रखता था...

वो दिल ही तोड़ लेता था...
अगर महबूब उसका रूठता था...
वो चुटकियों में मना भी लेता था...
वो बातें ऐसी करता था...

वो हर मोड़ खड़ा रहता था...
वो मनचला हमेशा साथ देता था...
वो सपने दिखाया करता था...
वो खुद भी सपनों में रहता था....

वो आसमान में उड़ना चाहता था...
वो सबको पंख देता था...
कोई पंछी था बेचारा...
जो राह उसकी देखता था...
वो उड़ गया अब अकेला ही...
अपने साथी कि छोड़ कर...
ओह परिंदे जरा रुक जा...
जहां बारिश नहीं बरसी..
वहां बहार दे जा...
सीने में दिल है ...
तू धड़कन दे जा...
तू बस आजा पास...
बेशक फिर उड़ के जा...
और मेरी जान ले जा...।

तुम्हारी अप्सरा
© jyoti