...

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मेरे लफ़्ज़
जो लिखे थे लफ़्ज़ अब वो धुंधले पड़ने लगें हैं,
अलमारी में पड़े पड़े मेरे लफ़्ज़ दम तोड़ने लगें हैं।

मेरे ही लफ़्ज़ अब मुझे ताना मारने लगें है,
मेरे ही लफ़्ज़ अब मुझ से मुँह मोड़ने लगें हैं।

जो लिखे थे लफ़्ज़ अब वो सवाल करने लगें हैं,
कब तक करोगे मुझे आज़ाद अब पूछने लगें हैं।

क्या है क़ीमत मेरी इस दुनिया के बाज़ार में,
मेरे ही लफ़्ज़ मुझ से अपना क़ीमत पूछने लगें हैं।