...

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माया का फंदा
क्यों भटक रहे हो तुम,
माया के अँधियारों में।

उलझकर रह जाओगे तुम,
इस माया के गलियारों में।

माटी के इस काया के लिए,
इतना क्यों तुम तड़प रहे हो।

पिपासा के अग्नि में जलकर,
एड़िया क्यों तुम रगड़ रहे हो।

क्षणभंगुर है यह मोह माया,
जिसके पीछे तुम दौड़ रहे हो।

माया के फंदा में पड़कर तुम,
स्वयं को क्यों उलझा रहे हो।