...

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बहता पानी सा हूं
मैं तो बहता पानी सा हूं
रुकना मुझे पसंद नहीं
पड़ जाऊं किसी के प्रेम में
प्रेमिका बनना मुझे कभी पसंद नहीं।

दिल में छुपा रक्खी है ऐसी कोई बात नहीं जी
हालातों से हारा हूं मैं तो ऐसा इंसान नहीं जी
मैं तो डिस्टिल वाटर जैसी हूं
इसमें मिनरल मिलने जैसी कोई बात नहीं जी।

सभी जोड़ना चाहते हैं कोई रिश्ता
कैसे जुड़ जाऊं मैं सबसे
सबमें तो ऐसी कोई बात नहीं जी
ख़ुद को तोड़कर किसी से भी जुड़ जाऊं
मैं ऐसी तार नहीं जी।

मैं तो बहता पानी सा हूं
रुकना मुझे पसंद नहीं
पूजा में नहीं मिलूंगी
मैं कोई पूजा वाली फूल नहीं जी
सुबह की किरणों जैसी हूं
देर से जो जागता,उसे मैं कभी नहीं दिखती
क्योंकि रुक जाना मुझे कभी पसंद नहीं जी।

रुकना,बैठना और ठहरना
कभी नहीं मुझे भाता
रिश्तों में पड़कर
दिल तोड़ना किसी का
कभी भी मुझे पसंद नहीं जी
मैं निर्झर झरने जैसा हूं
कल - कल कर बहता जीवन संगीत मेरा।

नहीं रुकना कभी जीवनपथ पे
बह - बह कर मिट्टी में मिल जाना धर्म मेरा
किसी के गले की प्यास बुझाऊं
पेड़ों में अपना मीठा जल दूं
भटके राहगीर की प्यास बुझाऊं मैं
ऐसी ही इक छोटी अभिलाषा मेरी
बहते - बहते ही खत्म
इक दिन हो जाऊं मैं।

मैं तो बहता पानी सा हूं
रुकना मुझे कभी भी पसंद नहीं।।


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