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आईना इस दुनियां का
#दर्पणप्रतिबिंब

दो आईने हैं मेरी जिंदगी में,
एक है मेरे घर में,
और दूसरा है इस दुनियां में।

घर के आईने में दिखता है, सिर्फ एक नाम,
सिर्फ एक चेहरा, एक अनजाना सा इंसान।
पर दुनियां के आईने में दिखता है,
मेरा उद्देश्य, मेरा मन।

हर चेहरे में छुपा है एक आईना,
एक प्रतिबिंब नया,
नए चेहरों की तलाश में,
एक दिन वो छोटा बच्चा दिखा गया,
मेरे अंदर छुपे बैठे उस "पुराने" बच्चे का प्रतिबिंब,
जो बिना किसी 'मतलब' के मुस्कुराना चाहता है।

वो युवा लड़की, दिखा गई,
मेरे अंदर की खुबसूरती का राज़,
जो नहीं है, किसी के वाह वाही का मोहताज।

वो थकी हारी मां दिखा गई,
दुनिया के दस्तूर, वो आत्मसमर्पण,
और हर हाल में ज़िन्दगी जीने का जज्बा।

वो दौड़ता भागता पिता, दिखा गया,
दुनिया की होड़, परिवार की भूख,
जिम्मेदारियों का बोझ,
और हर हाल में उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश।

सड़क पर रेस लगाते, गाड़ियों के काफिले,
दिखा गए, वो सच्चाई,
कि किसी से कोई उम्मीद न रख,
कि कोई तेरे साथ एक पल ठहर जाएगा,
दुनियां यूं हीं भागती-दौड़ती रहेगी,
कोई फर्क नहीं पड़ेगा, चाहे तू चले न चले।

बागीचे में बेंच पर बैठे, गप्पे लड़ाते, हंसते बुजुर्ग,
दिखा गए,
जीवन भर कमाए रिश्तों की पूंजी,
बता गए वो अनमोल बात,
कि अपने परिवारजन और दोस्त हीं हैं,
खुशियों की असली कुंजी।

कीचड़ से लथपथ मजदूरों के वो पैर, दिखा गए,
इस चकाचौंध भरी दुनियां के बनने का राज़।
बता गए,
कि बीते कल में कुछ नहीं रखा,
उठा अपने कर्तव्य का हथौड़ा और
बदल सकता है तो बदल दे अपना आज।

चौराहे पर बैठे वो भिखारी और
सुनहरे जंजीरों में बंधे घूमते वो पालतू जानवर,
दिखा गए,
सत्ता पर बैठे उन इंसानी बंदरों के करतब,
और समझा गए,
पूंजीवाद, समाजवाद और लोकतंत्र का मतलब।

उंचे टीले पर धुनी रमाए वो साधु, दिखा गए,
कि असली खुशी का भौतिकता से नहीं है कोई वास्ता,
और अंतर्मन से हीं होकर गुजरता है,
हृदय स्थित ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता।

चार कंधों पर गुजरता वो हाड़ मांस का पुतला,
दिखा गया,
शाश्वत सत्य, वो भेद आत्मा, परमात्मा और दैहिक आवरण का।
बता गया,
इन रिश्ते नातों की क्षणभंगुरता, इस जीवन की नश्वरता।

गजब है ये दूसरा आईना,
एक चेहरे में दिखाता है कई सारे छुपे चेहरे।

हर एक प्रतिबिंब में छिपी है एक नई कहानी,
हर कहानी बता गई,
कि ये दुनियां है एक दरिया,
और तेरी जिंदगी है एक बहता पानी।

हर कहानी,
चीख चीखकर कह रही है, कि लगा तू भी एक दांव,
चाहे डूब जा, बन के तू तल का पत्थर,
या कूद पड़ इस दरिया में, लेकर अपने उम्मीदों की नाव।
चाहे आए कितने भी तूफ़ान, कितने भी धूप-छांव,
डटा रह, अड़ा रह, और बना ले ख़ुद को "अंगद का पांव"।

© AK