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आईना इस दुनियां का
#दर्पणप्रतिबिंब

दो आईने हैं मेरी जिंदगी में,
एक है मेरे घर पर,
और दूसरा है इस दुनियां में।

घर के आईने में दिखता है, सिर्फ एक नाम,
सिर्फ एक चेहरा, एक अनजाना सा इंसान।
पर दुनियां के आईने में दिखता है,
मेरा उद्देश्य, मेरा मन।

हर चेहरे में छुपा है एक आईना,
एक प्रतिबिंब नया।
नए चेहरों की तलाश में,
एक दिन वो छोटा बच्चा दिखा गया,
मेरे अंदर छुपे बैठे उस "पुराने" बच्चे का प्रतिबिंब,
जो बिना किसी 'मतलब' के मुस्कुराना चाहता है।

राह चलती, इठलाती, वो युवा लड़की, दिखा गई,
मेरे अंदर की खुबसूरती का राज़,
जो नहीं है, किसी के वाह वाही का मोहताज।

आंगन में बैठी, वो थकी हारी मां दिखा गई,
दुनिया के दस्तूर, वो आत्मसमर्पण,
और हर हाल में ज़िन्दगी जीने का जज़्बा।

बाज़ार में वो दौड़ता भागता पिता, दिखा गया,
दुनिया की होड़, परिवार की भूख,
जिम्मेदारियों का बोझ,
और हर हाल में उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश।

सड़क पर रेस लगाते, गाड़ियों के काफ़िले,
दिखा गए, वो सच्चाई,
कि तू किसी से कोई उम्मीद न रख,
कि कोई तेरे साथ एक पल भी ठहर जाएगा,
अरे दुनियां...