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शरणागत
सुकलाल अग्रवाल की थी,एक नटखट गाय,
किसी से न डरती,दिनभर घूमती जाय।
न आती किसी के काबू ,संखल भी तोड़ भाग जाय।
रौंदती वह बच्चों,बलशालीयों को सींगों से उछालती जाय।
घुसकर दुकान में अनाज खा जाए,बाकी बिखेर कर जाए।
कहते सब बाघिन कहते उसे,कहते नही उसे गाय।
न हुई कभी गाभिन,न कभी ब्याति वह जाय।
सभी देते सुझाव कि कसाई को उसे बेचा जाय।
या बंदूक से मार दी जाय, कुछ तो करो उपाय।
सुकलाल कहता मुझसे न होगा, आप सभी करो उपाय।
बंदूक लेकर बैठा पठान सोचा आज मार ली जाए।
इरादे उसके जान कर सींगों से उछाल क्रोध जताती गाय।
दूर छोड़ा गया उसे फिर भी बार बार लौट के आये।
लोगो ने दिया उपाय अर्पण कर दो गजानन को यह गाय।
एक तो दान का पुण्य,हम सब इससे छुटकारा पाए।
यह मत सबको भाया चलो शेगांव छोड़ आये यह गाय।
उसे बांधने के सारे प्रयास असफल,सुझा एक उपाय।
हरे चारे सरकी के लालच से उस पर काबू पाया जाए।
आ गयी लालच वह गाय,दस मिलाकर वश में कर पाए।
सांकल गले डाल गाड़ी में भेजी गयी वह गाय।
जैसे जैसे शेगांव करीब आये,उसमे बदलाव नज़र आये।
समर्थ के सामने आते हीहो समर्पित हो गयी वह गाय।
गजानन के सामने,आंखों से उसके अश्रु बहते जाए।
गजानन बोले यह क्या मूर्खता है यह है एक गाय।
बाघिन होती तो उचित होता,यह सब उपाय।
यह जगत की माता है,इसकी ऐसी दुर्दशा कर लाये।
मुक्त करो तुरंत,अब न मारेगी किसी को यह गाय।
साहस नही किसी का,जो उसके बंधन खोंलने जाय।
महाराज ने स्वयं बंधन से मुक्त की वह गाय।
मुक्त हो बंधन से,घुटने मोड़ वंदन करने लगी गाय।
सर झुकाए तीन प्रदक्षिणा,उसने फिर लगाए।
महाराज को वंदन कर उन्हें चाटकर प्रेम दिखाती जाए।
महाराज बोले किसी को न सताना,मठ में तुम रहना माता।
दुष्ट प्रवृत्ति भी महाराज के चरणों में शरणागत हो जाये।
न सताया किसी को फिर,अच्छी गौ के लक्षण पाए।
जय गजानन,श्री गजाजन,हम पर भी कृपा बरसाए।
संजीव बल्लाल १४/३/२०२४© BALLAL S