...

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जवानी
एक झपकी सी आई थी,
कि आंखें खुली तो देखा,
खो गया बचपन का जमाना था,
जवानी देहलीज पर खड़ी थी....


कुछ नई उमंगे, नई तरंगे लिए,
दिल में कई अरमान लिए,
कदम आगे बढ़े ही थे,
कि दायरों ने कदमों को रोका आगे बढ़ने से ....


देकर जवानी की मुठ्ठी में कुछ रेत,
दायरों ने फुसफुसा कर कहा हौले से,
ये रेत नहीं वक्त है तेरा,
इसे फिसलने दो हाथों से अपने,
तुम ना फिसल जाना कहीं भूले से....


जिंदगी एक ही मिली है,
इसकी कीमत को ना भुलाना,
अपनी हस्ती के खाक होने से पहले,
अपनी काबिल एक पहचान बनाना....




© अपेक्षा