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पन्ने डायरी के
मुझ पर चढ़े कुछ कुसुम ही तो साथ ले जाना चाहु, कितना ही भार बढ़ेगा तेरे सर्ग नर्क पर
दफना दिया जाए तो भी क्या,एक मुठ्ठी मिट्टी की ही तो बात हैं, कितना ही भार बढ़ेगा तेरे सर्ग नर्क पर
ऊढ़े जो कफन मुझपर, तो कितना ही सही कुछ गर्माहट साथ ले जाना चाहु भी तो, कितना ही बढ़ेगा तेरे सर्ग नर्क पर
आँसु बहे मुझपर, कुछ बूंद ही सही ले आना चाहु सूखते गले की प्यास बुझाने को,कितना ही भार बढ़ेगा तेरे सर्ग नर्क पर
जो वेदना भरे स्वर उठे तो कितने ही सही, ले आना चाहु उन...