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मधुमक्खीयों से प्रेंम
किया बंकट ने विचार,भुट्टे खिलाये गजानन को इस बार,
सब लगाए गए काम पर,कुंए के नज़दीक जलाई आग।
धुएं के अंबार से व्यथित,मधुमक्खियों ने किया सब पर वार।
डर कर भागे सभी,किसी ने न किया महाराज का विचार।
वही खड़ा बंकट देख रहा था,मधुमखियों का अत्याचार।
घेरे थी सभी महाराज,डंकों से करते हुए वार।
प्रचंड दर्द सहकर भी,गजानन न करते प्रतिकार।
फिर कहा मधुमक्खीयों से अब चली जाओ अपने घर द्वार।
जाते हुए न करना तुम,मेरे बंकट पर वार।
प्रिय मुझे बंकट,संकट में भी न गया मुझे छोड़कर।
असंख्य डंक दर्द पर महाराज की सहन शक्ति थी आपार।
डंक निकलने बंकट ने बुलाये कुछ सुनार।
एक एक कर निकालो सबको कष्ट न हो महाराज पर।
फिर योग मुद्रा से गजानन ने डंक को किया बाहर।
क्षमा मांग कर बंकट ने दुख जताया अपार।
बोले गजानन दुखी न हो मक्खियां भी है मेरा शरीर ।
देती शहद मुझे,डंक दिया इस बार जो है स्वीकार।
फिर सबने खाये भुट्टे,कंडो में सेक कर सब आये लौट कर।
संत की महिमा अपार,कष्ट सहकर भी जताया प्यार।
संजीव बल्लाल ११/३/२०२४© BALLAL S