...

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तुमसे मिलकर
तुमसे मिलकर मुझे ऐसा लगा....
मानो, बरसों खोई पुरानी किताब मिल गई।
तुम मुस्कुराई तो मुझे ऐसा लगा....
मानो, पुरानी किताब में रखे गुलाब महक उठे।
तुमसे बातें करके मुझे ऐसा लगा....
मानो, पुरानी किताब को मैंने पढ़ लिया।
सच कहूं....
तुम मेरी पुरानी किताब हो।
जिसे मैं वक्त _बेवक्त पढ़ा करता हूं।
:, कुमार किशन कीर्ति।




© कुमार किशन कीर्ति