...

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आज फिर से नया साल आया है
इतवार के आज पहली सुबह को
कोहरे के चादर को ओढ़कर,
देखो फिर से नया साल आया है।

छोड़कर हर गिले और शिकवे
को, वो संग में अपने, आज ढ़ेर
सारी खुशियों को लाया है।

पूरी जग सजी है, आज अपनो
के दुआओं की ढ़ेरों मालाओं से,
सबने मुबारकबाद को पाया है।

पूरे एक वर्ष के इंतज़ार के बाद
इतराते और इठलाते हुए नया
साल नई उम्मीदें लिए आया हैं।

नया वर्ष, नई मौसम को लाया है
संग में अपने, अपनों का प्यार
भरा ये न‌इ सौगातों को लाया है।

नई उम्मीदों के गठरियों को बांधके
आज फिर से नया साल आया है-
आज फिर से नया साल आया है।
©हेमा