आज फिर से नया साल आया है
इतवार के आज पहली सुबह को
कोहरे के चादर को ओढ़कर,
देखो फिर से नया साल आया है।
छोड़कर हर गिले और शिकवे
को, वो संग में अपने, आज ढ़ेर
सारी खुशियों को लाया है।
पूरी जग सजी है, आज अपनो
के दुआओं की ढ़ेरों...
कोहरे के चादर को ओढ़कर,
देखो फिर से नया साल आया है।
छोड़कर हर गिले और शिकवे
को, वो संग में अपने, आज ढ़ेर
सारी खुशियों को लाया है।
पूरी जग सजी है, आज अपनो
के दुआओं की ढ़ेरों...