...

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मुलाकात की घड़ी
तेरी यादों में डूबकर सुबह कब हो गई,
तेरे ख्यालों के इंतज़ार में रात महक गई।

जाड़ों की धूप पड़ी सामने आँखे मचल गई,
ख्वाबों भरी रात की ठिठुरन जाने कब गुजर गई।

तेरी यादों की बारिश मेरा सिरहाना भिगा गई,
करवट बदलते ही तेरी मूरत सामने नज़र आ गई।

आँख जो खुली तो सुबह जाने कब बदल गई
तेरे ख्यालों की खुमारी ख्वाबों में आकर बस गई।

खिड़की से झांकती बुलबुल फ़ुर् फ़ुर् करके उड़ गई,
लगा तुम पास आकर बगल से चुपचाप निकल गई।

किरणों के चले जाने से साँझ ढलती चली गई,
वो सांझ जो ढली तो लगा मुलाकात की घड़ी आ गई।




© hemasinha