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कश्मकश से घिरा मानव मस्तिष्क
कशमकश से घिरा मानव मस्तिष्क काल चक्र,
में फंस कर विलुप्त के कग़ार में ग़ुम हो जाता है!

कभी खुद की तक़दीर से हार,वो टूट कर काँच की,
तरह बिखर कहीं मायूस एवं हताश हो जाता है !

परिवार के जिम्मेदारियों की बोझ तले,अपनी ख़ुशी
को कहीं ना कहीं दुःख में परिवर्तित कर जाता है !

मोह माया के बंधन में वो बंध कर,वो कभी भावुक,
होकर ज़िन्दगी से ही नजरे मिलाने से डरता है !

अपनों से किए विश्वासघात से, इंसान कहीं टूट कर,
खुद को अकेला एवं तन्हा को गले लगा जाता है !

दिल में हज़ार दर्द को दफ़न कर,वो अंदर से कुंठित,
दुनियाँ से अलविदा कहने को मज़बूर हो जाता है!

खुशियों को त्याग कर,वो दर्दो में जीना सीख लेता,
जिंदगी से हारकर वो गलत राह को चुन लेता है!
© Paswan@girl