आवो हवा
इस ज़माने की आवो हवा भी अब लगती नहीं
आज कल इंसानों की दुआ भी अब लगती नहीं
झूठ का चेहरा लिए है सब दुनियां समझती नहीं
मैं रहता हूं वहां जहां बस्ती इंसानों की लगती नहीं
राज दिल में छुपाये लोग आग दिल में लगती नहीं
दूर अपनों से है सब आंखे उनकी भी तरसती नहीं
वो पथराई आंखे है जो हककीकत सी लगती नहीं
जिंदा लाशें है सब ममता, आखों से बरसती नहीं
© DEEPAK BUNELA
आज कल इंसानों की दुआ भी अब लगती नहीं
झूठ का चेहरा लिए है सब दुनियां समझती नहीं
मैं रहता हूं वहां जहां बस्ती इंसानों की लगती नहीं
राज दिल में छुपाये लोग आग दिल में लगती नहीं
दूर अपनों से है सब आंखे उनकी भी तरसती नहीं
वो पथराई आंखे है जो हककीकत सी लगती नहीं
जिंदा लाशें है सब ममता, आखों से बरसती नहीं
© DEEPAK BUNELA