...

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शायद बचपन लौट आये
बचपन की वो मासूमियत कहां है,
जो कुछ कोई कह देता वो ही मान लेतें थें,
पल भर में दोस्त बनां लेतें थें,
कभी जिद पर अड़ जातें थें,
फिर सभी बड़े मन बहला देतें,
और बड़ी बड़ी बातें बता सब भूलवा देतें
कभी जानबूझकर हम रोनें लगतें,
ताकि कोई आकर हमसे करें अच्छी बातें,
कभी कोई डांटे तो रो पड़ते थें,
अब तो हमारे पास रोने तक समय नहीं,
कभी मस्ती में झुमतें थें,
मां,पापा को मस्ती में चुमतें थें,
शायद कभी वो बचपन लौट आये....!

बचपन में तो कभी हमारी किसी से बैर नहीं थी,
बस दोस्तों से कभी कट्टी करतें,
तो पल भर बट्टी कर गले लग जातें,
अब तो हम लड़ते-लड़ते नफरत करनें लगतें है,
गले लगाने कि तो छोड़ो अब
सीधे मुंह बात भी नहीं करतें हैं,
कहां गयी वो मासूम सी बातें,
काश हम फिर से कर पातें,
काश वापस आ जायें वो बूंदों की बरसातें,
जब हम नाचते खुशियों की ले सौगातें,
वो पल लौट आतें... काश,
वो बचपन के दोस्त लौट आतें,
कभी हम भी खुश हो पातें,
काश वो वक्त वो पल लौट आतें
चलो फिर वो पल जियें,
शायद बचपन लौट आये...!!

written by:Vanshika Chaubey
#bachpanlautaye
#writcopoemchallenge