...

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ओझल आँखें
गिरता है मन थकता हूँ मैं
चलती साँसों को लेकर मरता हूँ मैं,
कुछ हासिल नहीं है सब लुट ही गया है
फिर क्या बचा है जिसे खोने से डरता हूँ मैं,
महफिल जमी है खुशी मिलती नहीं है
अब अकेले ही खुद से बातें करता हूँ मैं,
चाहा था जो मैने वो पाया नहीं है
तलाशा था जिसे मैने वो आया नहीं है
हर मुस्कुराने की कोशिश भी नाकाम हो गई
अब आँखों को आँसुओं से भरता हूँ,
सीने में लेकर मायूसी ये बेरूखी जिंदगी है
उजाले को ढूंढती ये अंधेरे में छिपी जिंदगी है
उम्मीद क्या ही करूँ खुदसे कुछ होगा नहीं मुझसे
अब खुद को मिटाने की कोशिश करता हूँ मैं
© hv_musings