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साहिबजादे और माता गुजरी की शहादत 🕉️
चार चार बेटे जिनके देश पर शहीद हो गए थे।
याद करों कुर्बानी उनकी यही पौष महीने के
सर्द दिन थे।
दो शहीद हुए थे रणभूमि में दो जिंदा चिने दीवार में।
याद करों कुर्बानी उनकी यही पौष महीने के
सर्द दिन थे।
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चौदह और सत्रह साल बड़े साहिबजादो की उम्र थी।
चमकौर की जंग में जब दोनों ने शहादत पाई थी।
देकर आशीर्वाद दोनों को गुरु गोविन्द सिंह ने प्यारे पुत्रों को भेजा था।
नहीं झुके सामने किसी के बड़ी शान से शहादत पाई थी
जुझारू और अजित सिंह इस देश के लिए खप गए थे।
याद करों कुर्बानी उनकी यही पौष महीने के
सर्द दिन थे।
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छोटे साहिबजादे जोरावर और फतेहसिंह को किया था दादी के संग कैद।
पौष महीने की सर्द हवाओं में ठंडे बुर्ज में किया था
दुश्मन ने कैद।
माता गुजरी ने पढ़ाया क़ैद में देश धर्म की रक्षा का पाठ।
नहीं शीश झुकाना दुश्मन के आगे मेरे पोतों यही पढ़ाकर भेजतीं थी दुश्मन की कचहरी में पाठ।
दादी के वचनों को सुन कर लिया था बच्चों ने प्रण।
नौ और सात साल की उम्र में पढ़ा देश धर्म का पाठ।
इतनी छोटी सी उम्र में पाठ पढ़ गए थे देश धर्म के।
याद करों कुर्बानी उनकी यही पौष महीने के सर्द दिन थे
🕉️🕉️
धर्म बदलेंगे तो क्या नहीं मरेंगे किया था
दुश्मन को सवाल
मरना ही है तो फिर क्यों न शान से हम मर जाएं
देश अपने के लिए हम क्यों ना काम आ जाएं।
सुनकर बच्चों के मुख से ये दुश्मन फिर बौखलाया था।
दोनों साहिबजादो को दीवार में जिंदा
चिनने का हुकुम सुनाया था।
डरे नहीं वो खड़े रहे थे फरमान मौत के सुनके
याद करों कुर्बानी उनकी यही पौष महीने के सर्द दिन थे
🕉️🕉️
छोटे साहिबजादे जोरावर और फतेहसिंह की कुर्बानी की मिली थी जब माता गुजरी कों खबर।
वहीं ठंडे बुर्ज में शरीर त्याग कर चलीं गईं थीं अपने प्यारे पोतों के संग।
कह SKGujjar 🙏 जोड़ कर
माता और चार बेटे गुरु गोविन्द सिंह जी ने कुर्बान देश पर कर दिए थे।
याद करों कुर्बानी उनकी यहीं पौष महीने के सर्द दिन थे
यहीं पौष महीने के सर्द दिन थे।
25/12/2023/
S K C Gujjar ✍️
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© Sudesh Chauhan (SK)