ऊँचे ख्वाब
कितनी अलग सोच है उसकी
सबने ढूंढा एक दूजे का साथ
पर वह तो अकेला ही चल दिया
सबको पीछे छोड़ एक नई राह
का दामन पकड़ लिया....
वो था समुद्र का किनारा
बहती हवा का सा था वो समा
ढलती शाम का नजारा
पर वो न था अकेला बेचारा
क्योंकि ख्वाब थे उसके ऊँचे
जो साथ...
सबने ढूंढा एक दूजे का साथ
पर वह तो अकेला ही चल दिया
सबको पीछे छोड़ एक नई राह
का दामन पकड़ लिया....
वो था समुद्र का किनारा
बहती हवा का सा था वो समा
ढलती शाम का नजारा
पर वो न था अकेला बेचारा
क्योंकि ख्वाब थे उसके ऊँचे
जो साथ...